अहमदाबाद एक बहुत बड़ा शहर है, साबरमती के कारण उसकी सुन्दरता और बढ़ जाती है। मैं बिजनेस के सिलसिले में यहा आया था। मेरे बिजनेस पार्टनर महेश के यहां मैं रुका हुआ था। उनके घर में मियां बीवी के अलावा तीसरा कोई भी नहीं था। शाम को आठ बजे के बाद वह घर आ जाता था। फिर महेश और उसकी पत्नी काफ़ी देर तक दोनों व्हिस्की पीते थे। साथ में अधिकतर वो कवाब और मुर्गा खाते थे। तो महेश ने मुझे भी बुला लिया। हम तीनों लगभग एक ही उमर के हैं... बातों बातों में खूब हंसी ठिठोली होती थी... वेज और नॉन वेज चुटकुले भी खूब सुनाते थे। अन्त में उन दोनों की हालत यह हो जाती थी कि वे बड़ी मुश्किल से बिस्तर तक जा पाते थे।
मैंने आज दोनों की मदद करके उन्हें सुला दिया, पर सुमन को ले जाते समय उसकी चूंचियों और चूतड़ों पर मेरे हाथ पड़ ही गये। बिस्तर पर गिरते ही उसका पेटीकोट भी थोड़ा ऊपर उठ गया था। मन ललचा गया। मैंने सावधानी से उनका पेटीकोट उठा कर उनकी चूत के दर्शन कर लिये। क्लीन शेव चिकनी चूत थी... मैंने इधर उधर देखा और फिर पेटीकोट बिल्कुल ऊपर उठा दिया। मेरा लण्ड उसे देख कर सलामी देने लगा। तन कर खड़ा हो गया। दिल में शैतान उतर आया।
मैंने धीरे से उसके ब्लाऊज के हुक खोल दिये, नंगी चूंचियां चमकती हुई भरी हुई गोल गोल और उस पर से उसके भूरे भूरे निपल... मेरे मुख से आह निकल गई। हिम्मत करके मैंने उसकी एक निपल मुख में ले ली और थोड़ा सा चूस कर छोड़ दिया। तभी महेश ने करवट ली। मैं घबरा कर दूर हट गया। पर वो गहरे नशे में था। मैंने लाईट बंद की और कमरे से बाहर आ गया और अपने कमरे में आ गया। मेरे लण्ड का बुरा हाल था। मैं अपने लण्ड को मसले जा रहा था। अन्त तो मुठ मार कर हुआ... अन्दर से सारा वीर्य बाहर आ गया तो शान्ति मिली। पर रात भर मै सुमन के बारे में ही सोचता रहा। उनका मद भरा जिस्म मेरी आंखो के सामने घूमता रहा।
सवेरे महेश को बाहर जाने की तैयारी देख कर मेरा मन खुश हो गया। उसने बताया कि वो दो तीन दिन के लिये सूरत जा रहा है और घर पर उसकी पत्नी का और घर का ध्यान रखना है। उसे मैं स्टेशन छोड़ने गया फिर अपने काम से शाम तक अपना बिजनेस का काम करता रहा। शाम को लौटते समय मुझे ध्यान आया कि शाम को उनकी आदत कवाब और मुर्गा खाने की है सो मैंने रास्ते से ये सब पैक करा लिया। घर पहुंच कर मैंने सुमन को वो सब थमा दिया तो वो बहुत हंसी,"अरे ये तो मै महेश के साथ ही लेती हूं, आप तो यूं ही ले आये !"
मैं झेंप सा गया। पर उसने कहा कि अगर मुझे ये अच्छा लगता है तो वो साथ दे देगी। मैं नहा धो कर फ़्रेश हो गया, सुमन भी नहा ली और फ़्रेश हो गई।
रात को वो मेरे लिये व्हिस्की ले आई। मैं आज भी उसे पिला पिला कर मदहोश कर देना चाहता था। वही हुआ भी, मैं तो केवल दो पेग ही पीता था पर सुमन ने तो रोज़ की तरह खूब पी ली थी।
रात गहराती गई... नशा भी गहराता गया... और आखिर वो घड़ी आ ही गई जिसका मुझे इन्तजार था। उसके हाथ पांव ढीले पड़ने लगे। वो सोफ़े पर ढुलकने लगी। जाने कब उसके ब्लाऊज का एक हुक खुल गया था और उसके सेक्सी उरोज की झलक नजर आने लगी थी। मैंने सोफ़े पर बैठते हुये उसके शरीर को सम्हाला और उसे आवाज दी, साथ में उसके ब्लाऊज का दूसरा हुक भी खोल दिया।
"सुमन जी... चलो बिस्तर पर लेटा दूँ ..." पर उसकी आंखें भारी हो कर बंद हो रही थी।
"वि...वि... जय ... मुझे उठा लो... और वहां... ले चलो... !" मौका था, उसका मैंने फ़ायदा उठा लिया। मैंने उसके स्तन धीरे से सहला दिये... और चूतड़ो को दबा कर उसे उठा लिया... मैंने अपना मुख नीचे करके उसकी नाभि को चूम लिया। उसके ब्लाऊज का अन्तिम हुक भी मैंने खोल दिया था। उसकी मस्त चूंचियों पर से परदा हट चुका था। उसे गहरे नशे में देख कर मैंने उसकी एक चूंची मुख में भर ली और चूसने लगा। शायद उसे मजा आया होगा। उसकी भारी आंखें एक बार खुली फिर वापस बन्द हो गई। मैंने उसे बिस्तर पर उसका पेटीकोट पूरा ऊँचा करके लेटा दिया। उसे आराम मिला और उसके मुख से खर्राटे निकलने लगे। मेरा लण्ड बेहद तन्ना रहा था और बेहाल हो रहा था।
मैंने अपनी पैण्ट खोल ली और उतार कर एक तरफ़ रख दिया। उसकी चूत गीली थी । मैंने उसका पेटीकोट पूरा उतार दिया।
इतने में वो बड़बड़ाई, "मुझे सू सू आ रही है... महेश ... वहाँ ले चलो..." मुझे कुछ समझ में नहीं आया तो मैंने उसे अपनी बाहों में उठा लिया और बाथरूम में ले गया। पर बाथरूम में पहुंचते ही मेरी बाहों में उसने अपनी धार छोड़ दी।
"आह... आह ... महेश... अब आराम हो गया !" उसने ढेर सारी पेशाब निकाल दी फिर उसकी बेचैनी दूर हो गई। मेरी बांहो में ही वो सो गई। मेरी टांगें उसके मूत्र से भीग गई थी। उसे फिर से बिस्तर पर लेटा दिया और मैं अपने चूतड़ों से लेकर नीचे तक पूरा नहा लिया और उसकी तौलिया से साफ़ कर लिया। वो नंगी ही दूसरी करवट ले कर सो गई। मेरी हालत बुरी थी, लण्ड उबल रहा था पर मैं कुछ कर भी तो नहीं सकता था। फिर मैंने एक हाथ से अपना लण्ड पर मुठ मारने लगा और दूसरे हाथ से कभी उसकी चूत मसलता और कभी उसकी चूंचियाँ ... तभी वो कहने लगी,"महेश आ जाओ ना... प्यार करो ना... !" वो नशे में मुझे अपना पति समझ रही थी। मैंने सोचा कि इसे तो भरपूर नशा है इसे क्या पता चलेगा कि कौन चोद गया। मैं जल्दी से उसकी बगल में लेट गया और सुमन नशे में मुझसे लिपट पड़ी... मैं उसे चूमने लगा... मेरा लण्ड तड़प उठा।
मैं उसके ऊपर चढ़ गया और लण्ड को उसकी चूत पर दबा दिया। लण्ड भीतर घुस गया... और मैं धक्के मारने लगा। उसे भी नशे में चुदाई बहुत प्यारी लग रही थी। उसके मुख से सिसकारियाँ निकलने लगी थी। उसके चूतड़ अब नीचे से उछलने लगे थे। मेरी हालत तो पहले ही खराब थी सो कुछ ही देर में मेरा वीर्य निकल गया। मेरा लण्ड बाहर आ गया था। वो नशे में अभी भी अपनी चूत को उछाल रही थी। मैंने अपनी तीनों अंगुलियाँ उसकी चूत में घुसेड़ दी। कुछ समय बाद वो झड़ गई । नशे और थकान में उसने करवट ली और गहरी नींद में चली गई। मैंने अपने लण्ड को साफ़ किया और सुमन को ठीक से कपड़े पहना दिये और अपने कमरे में चला आया। मेरा काम सफ़ल हो गया था। आज सुमन को चोदने की मेरी इच्छा भी पूरी हो गई थी।
सवेरे सब कुछ सामान्य था, सुमन की वही चिरपरिचित मुस्कान, वही बातचीत...
मैं निश्चिन्त हो गया कि रात गई बात गई ... उसे कुछ याद नहीं था। मैंने नाश्ता किया और उसने मुझे फिर याद दिला दिया कि शाम को आओ तो कवाब और मुर्गा के साथ काजू भी लेते आना। मुझे थोड़ी हैरत हुई फिर सोचा कि शायद मेरे लिये ही कह रही है।
शाम को फिर हम दोनों के बीच व्हिस्की आ गई... पर आज सुमन ने कहा कि व्हिस्की नहीं पियेगी पर मुझे अपने हाथों से पिलायेगी। उसका कहना था कि वो रोज व्हिस्की नहीं पीती है, फिर कल महेश के आने पर उसका साथ तो देना ही होगा। मुझे आज मेरी स्कीम फ़ैल होती दिखाई दी। फिर ये सोच कर चुप रह गया कि साकी के हाथ से पीने का लुफ़्त भी उठाया जाये। उसने मेरा एक पेग भरा और कहा कि "पास आओ... आज मैं आपको पिलाऊंगी..." और अपने हाथों से मुझे एक सिप दिया। सुमन उठ कर किचन में चली आई। मैंने सोचा कि अधिक ना हो जाये तो फिर से मैंने उसे बिन में डाल दिया। अब आलम यह था कि वो बार बार मुझे पिलाये और मैं उसे किसी ना किसी बहाने इधर उधर डाल दूं। मुझे अब ध्यान आया कि इसकी तरफ़ से तो मैं पांच पेग पी चुका हूँ सो मैंने भी बहकने का नाटक आरम्भ कर दिया। अब मुझे शक हुआ कि वो मुझे जानबूझ कर के पिला रही थी ... शायद उसे कल रात की घटना याद थी... मुझे लगा कि आज वही गेम मेरे साथ खेलना चाह रही है ...
सो मैंने अब सोफ़े पर लुढ़कने का नाटक किया। मेरा शक सही था। उसने मुझे दो तीन बार हिलाया और पूछा। मैंने नशे में मदहोश होने का नाटक किया और कहा,"मुझे... हिच्च... मेरे कमरे तक ... हिच्च ... ले चलो...!" उसने मेरी एक बांह अपने कंधे पर डाली और मुझे उठाने के जोर लगाया। मैं खुद ही उठ गया और जानबूझ कर के उसकी चूंचियों पर हाथ लगा दिया। मैं बिस्तर के पास आते ही ही लेट गया।
सुमन ने तुरन्त मेरे पजामे का नाड़ा खींच कर खोल दिया। मुझे आनन्द आ गया...
मैंने कल जो किया था वो सुमन आज कर रही थी... मेरा पजामा उसने नीचे खींच लिया।
मैं नंगा हो गया था। मेरा लण्ड तन कर खड़ा हो गया था। उसने मुझे आवाज दी... और मुझे हिलाया, मै बेसुध की भांति पड़ा रहा। तब उसने मेरा लण्ड पकड़ लिया और उसका सुपाड़ा खींच कर बाहर कर लिया। मैं उसे बराबर उसे आंखें खोल कर चुपके से देख रहा था। बड़ी ललचाई नजर से उसने हौले से मुठ मारा और सुपाड़ा मुख में ले लिया। एक अद्भुत आनन्द ... शरीर में बचैनी भरने लगी... वो मेरी गोलियों से भी खेलने लगी। उसने मेरा लण्ड चूस कर फिर उसे अपनी चूंचियों से रगड़ने लगी। मैंने अपने आप को बहुत कंट्रोल में किया हुआ था कि कहीं वीर्य ना छूट जाये। अब उसने मेरे लण्ड पर थूक लगाया और मेरे ऊपर आकर पेटीकोट उठा कर अपनी चूतड़ों को खोल कर गाण्ड का छेद को लण्ड पर रख दिया। उसने लण्ड पर जोर लगाया तो लण्ड सट से छेद में उतर गया। मैंने नशे में आंखे खोलने का प्रयत्न किया।
"सुमन जी... ये ... आह... ये क्या कर रही हैं आप...?"
सुमन एक बार तो घबरा गई... फिर दूसरे क्षण लण्ड को गाण्ड में पा कर शरमा गई।
"विजय... हाय मैं तो मर गई... आंखे बंद कर लो ना..." लण्ड और भीतर उतर गया।
मैंने भी अपने लण्ड का जोर ऊपर लगा दिया।
"सुमन जी... ... आप बहुत अच्छी हैं..." लण्ड गाण्ड में पूरा घुस चुका था।
वो इसी स्थिति में शरमा कर मुझसे लिपट गई।
"विजय ... अच्छे तो आप है... हाय... मुझे ऐसे ना देखो... अब मै क्या करूं...!"
"मैं बताऊँ ... अब शरम छोड़ो और जी भर कर चुद लो ... शुरूआत आपने की है... वीर्य मुझे निकालने दो !"
"हाय जी... ऐसे ना कहो... आह सच है... चोद दो साजन मेरे..." सुमन मुझसे लिपटती गई। उसने अब सीधे बैठ कर ऊपर नीचे अपने चूतड़ों को धस्काते हुये गांड में लण्ड लेने लगी। कुछ ही देर में उसने सिसकते हुये कहा,"अब मुझे नीचे दबा कर कल की तरह चोद दो...!" मुझे एक झटका सा लगा।
"तो कल का आपको सब याद है... आप बहुत शैतान हैं ... मुझे तड़पा तड़पा कर मजा लिया है आपने ?"
सुमन हंस पड़ी। अपनी दोनों टांगें ऊपर उठाते हुए बोली,"लो जी अब तो लण्ड फ़ंसा दो अपना और चोद दो मुझे... मुझे तो परसों ही मालूम हो गया था जब आपने मेरी चूत की पप्पी ली थी... मेरी चूंची सहलाई थी...आज मन की निकाल लो मेरे सजना !"
"धत्त... साली... मुझे चूतिया बना दिया ..." और लण्ड एक ही झटके में पूरा अन्दर तक पहुंचा दिया। मेरे लण्ड को सुकून मिल गया। उसकी गरम गरम चूत मुझे बहुत भा रही थी। दोनों ने मस्ती से चुदाई का मजा लेना आरम्भ कर दिया... दोनों की कमर एक साथ चल रही थी। शरीर में मीठी सी कसक बढ़ने लगी थी। सुमन के बोबे कड़क हो उठे थे। चूचक कड़े हो कर इठला रहे थे... बार बार मेरे मुख में चूचक लण्ड की तरह से घुस रहे थे। मेरी जीभ उसे जोर से रगड़ मार रही थी। धक्कों में तेजी आ गई थी। सुमन तो शादी शुदा और चुदी चुदाई थी... उसे बहुत मजा आ रहा था। शायद नये लण्ड के कारण। मुझे तो बस हर धक्के में ऐसा ही लगता था कि अब झड़ा... और उसकी चुदाई चूत ने पूरी कर ली... एक दो झटकों की मार से वो चित्त हो गई और उसकी चूत ने मुह फ़ाड़ कर पानी उगल दिया। वो मुझसे बेतहाशा लिपटने लगी। उसकी चूत में लहरें उठने लगी ... तभी इसी सुहाने आनन्द को उठाते हुये मेरा वीर्य भी उसकी चूत में भरने लगा...।
मैं अपना लण्ड दबा दबा कर अपना पूरा वीर्य उसकी चूत में निकाल रहा था। सुमन भी चारों खाने पसरी हुई थी... मैं भी उसके ऊपर उसे चूमता हुया लिपट गया। वो मुझे अब अलग करने लिये झटके मार रही थी... मैं पूरा झड़ने के बाद उठ गया।
"तो आपको नशा ही नहीं हुआ था... वैसे ही जैसे कल मुझे नहीं हुआ था..." और वो खिलखिला कर हंस पड़ी।
"हटो सुमन जी... आप ने तो मुझे बेवकूफ़ बना ही दिया !" पर मुझे तो कल भी चूत मिल गई थी और आज भी... भले ही बेवकूफ़ बन कर मिली।
"विजय... कल तो महेश आ ही जायेंगे... अब देर ना करो ... फ़टाफ़ट अपनी इच्छायें पूरी कर लें !"
"अरे तो फिर महेश से कैसे चुदवाओगी?"
"वो मुझे चोदता ही कब है... बस दारू पिया और लुढ़क जाता है...!" उसके मन का दर्द उभर आया। मुझे इससे कोई मतलब नहीं था कि उसका पति उसके साथ क्या करता है... बस मेरा लण्ड खड़ा था और उसे वही एक रसीला खड्डा नजर आ रहा था। मन कर रहा था कि उसे चोद चोद कर सारी खुमारी एक बार में ही उतार लूँ। अभी तो मुझे अर्जुन की तरह मछली की आंख ही नजर आ रही थी... हम दोनों एक दूसरे को चूमते हुये फिर से अपना यौवन रस निकालने की तैयारी में लग गये ...
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